Rohtash Verma

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लेखनी प्रतियोगिता -02-Oct-2022

रियल देशभक्त


इम्तिहान में सरीक होने
जब पहुंचा मैं शहर
देखा पैदल चलते हुए
जयपुर की सड़कों पर
कि प्रातः मुंह अंधेरे
वो ला रहा है एक टोकरी
शायद फल होंगे
मगर...... नहीं.....
उसमें कचरा था बदबूदार
फैला गया यूं ही सड़क पर!

बढ़ा मैं कुछ दो कदम आगे
वो कंपकंपाते हाथों वाली
एक बूढ़ी औरत
जो बून रही थी अखबार से कुछ अद्भुत
अदृश्य मूक चित्र रेखाएं
मैं स्तब्ध था हर्षित भी देख उसे
बोला स्वयं से वाह! अद्भुत कारीगरी
प्रणाम हे! नमन तुम्हे;
है तुम्हारा ये कितना पावन रक्त!
हे असली देशभक्त!!

गड़ाता नजर चहूं ओर
बढ़ा कुछ और आगे
सम्मुख वह बालिका बाल
देता पिता आदेश उसे
जा उठा ला वो प्लास्टिक,माल
था कंधे मैला सा थैला
हाय! जीवन वो कैसा अलबेला
लगा ठोकर लुढ़काते हुए
वह बालिका वह पिता सख्त
धन्य तुम! धन्य वह
हे असली देशभक्त।।

रोहताश वर्मा 'मुसाफिर' 

   16
16 Comments

Zakirhusain Abbas Chougule

08-Oct-2022 07:18 AM

बहुत खूब

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Rohtash Verma

01-Nov-2022 07:58 AM

Thanks very much ji sir

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Gunjan Kamal

05-Oct-2022 06:58 PM

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति 👌🙏🏻

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Rohtash Verma

01-Nov-2022 07:59 AM

दिल से शुक्रिया जी आपका 💐💐

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नंदिता राय

03-Oct-2022 09:44 PM

शानदार

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Rohtash Verma

04-Oct-2022 09:21 AM

Thanks very much ji

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